उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटा जिला उन्नाव कभी खुदाई में सोना मिलने तो कभी यहां होने वाली आपराधिक घटनाओं के लिए ही हाल फिलहाल में चर्चा में रहा, लेकिन क्या आपको पता है कि इसी जिले में मोहान के स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी की लिखी नज्म ‘चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है’ फिल्म ‘निकाह’ में निर्माता निर्देशक बी आर चोपड़ा ने शामिल की और इसी उन्नाव जिले में सफीपुर के रहने वाले कालजयी लेखक भगवती चरण वर्मा ने बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी के पूछने पर यूसुफ खान को नाम दिया था, दिलीप कुमार। चौंक गए ना, जी हां, वेब सीरीज ‘जुबली’ का पहला सिरा इसी बॉम्बे टाकीज से जुड़ता है और सीरीज के प्रसारण के बाद ये बॉम्बे टाकीज स्टूडियो इन दिनों फिर से सुर्खियों में हैं।
बॉम्बे स्टूडियो की कहानी पर बनी ‘जुबली’
प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘जुबली’ की कहानी कुछ कुछ इसी बॉम्बे टाकीज की स्थापना करने वाली देविका रानी और उनके पति हिमांशु राय पर आधारित है। सीरीज में एक जगह जिक्र आता है, जिससे पता चलता है कि सीरीज में दिखाया गया काल्पनिक स्टूडियो रॉय टाकीज भी मुंबई के मलाड में स्थित है तो हमने मलाड में तलाशा वह बॉम्बे टाकीज स्टूडियो जिसकी आबो हवा में घुली कहानियां कल्पनाओं के रथ पर सवार होकर ‘जुबली’ के रास्ते दुनिया भर में फिर महकी हैं।
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दिलीप, देव आनंद और अशोक कुमार का ठिकाना
बॉम्बे टॉकीज यानी वह जगह जहां से अशोक कुमार, देव आनंद, दिलीप कुमार, मधुबाला जैसे सितारों को शोहरत का नया आसमान देखने को मिला, लेकिन यहां खड़े होकर अब जो आसमान दिखता है, उसमें इसके सुनहरे अतीत की कोई चमक नजर नहीं आती है। अपनी दमक पूरी तरह खो चुका ये स्टूडियो अब दिन रात मजदूरों की चहल पहल से गुलजार एक इंडस्ट्रियल एरिया बन चुका है। बस नाम में ही इसके इतिहास की झलक मिलती है और अब इस जगह को जाना जाता है, बॉम्बे टॉकीज कंपाउंड के नाम से।
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हिमांशु राय का नाम बाकी है
मुंबई के उपनगर मलाड पश्चिम से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित बॉम्बे टॉकीज की जो जगह अब बॉम्बे टाकीज कंपाउंड के नाम से जानी जाती है, वहां तक पहुंचाने वाले रास्ते का नाम है, हिमांशु राय रोड, लेकिन बॉम्बे टाकीज कंपाउंड के आसपास रहने वालों को इस बात का इल्म तक नहीं है कि जहां वह रहते हैं, वहां कभी दिन रात फिल्मों की शूटिंग हुआ करती थी। कुछ बुजुर्ग लोगो को जरूर इस स्टूडियो के इतिहास के बारे में पता है, लेकिन वे बात करने से ऐसे डरते हैं, जैसे कोई उनकी मुखबिरी करने आया हो।
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यहीं बनीं ‘जिद्दी’, ‘ज्वार भाटा’ और ‘महल’
इस बॉम्बे टाकीज कंपाउंड का भ्रमण कराने से पहले आपको बता दें कि भारतीय फिल्म उद्योग के पहले स्टूडियो कहे जाने वाले बॉम्बे टॉकीज की स्थापना साल 1934 में हिमांशु राय और देविका रानी ने की। दोनों जर्मनी से फिल्म मेकिंग सीखकर हिंदुस्तान लौटे थे। बॉम्बे टॉकीज ने कोई 40 फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें ‘जवानी की हवा’, ‘जीवन नैया’, ‘अछूत कन्या‘, ‘बसंत’, ‘ज्वार भाटा’, ‘जिद्दी’ और महल आदि प्रमुख हैं। अपनी फिल्मों के माध्यम से कई वर्षों तक लोगों का मनोरंजन करता रहा। बॉम्बे टॉकीज को बीच में फिर से फिल्म निर्माण का केंद्र बनाने की पहल भी शुरू हुई थी, लेकिन ये कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। इस जगह को अब बॉम्बे टॉकीज कंपाउंड के नाम से भी कम, बल्कि सोमवारी बाजार के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
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